पुष्पा 2 फिल्म समीक्षा | pushpa 2 movie review

पुष्पा 2 फिल्म समीक्षा | pushpa 2 movie review

क्या पुष्पा 2 द रूल, पुष्पा द राइज को पीछे छोड़ती है ? जाने क्या है पुष्पा 2 द रूल की कहानी।

फिल्म के पहले भाग पुष्पा द राइज में पुष्पा (अल्लू अर्जुन ) को जमीं से उचाईयों तक जाते दिखाया था। चन्दन की तस्करी करने वालो के पास मजदूरी करने से लेकर पार्टनर बनने और फिर सिंडिकेट का लीडर बनने और उसके बिच के संघर्ष को बताया गया था। फिल्म एक अहम मोड पर खत्म होती है जंहा एसपी भंवर सिंह शेखावत की पुष्पा से दुश्मनी खतरनाक मोड़ लेती है। इसी की उम्मीद ले कर अगला भाग देखने जाने पर ऐसा कुछ नहीं मिलता है। डायरेक्टर ने पुष्पा और भंवर सिंह के बिच कुछ टक्कर वाले सीन रचे तो है, लेकिन उसमे उतना मजा नहीं आया।

पुष्पा 2 द रूल में पुष्पा अब सिंडिकेट का लीडर है और कभी भी किसी भी मंत्री को बदल देता बड़ी बड़ी करोड़ो की डील करता है। पुष्पा की पहुंच बहुत ऊपर तक है, उसके पास पावर है। पुष्पा की तुलना में शेखावत कुछ भी नहीं लगता है, पुष्पा चाहे तो शेखावत को कभी भी हटा सकता है, इस लिए पुष्पा और भंवर सिंह का टकराव फीका सा लगता है। साथ ही सिंडिकेट वालो के लिए शेखावत से हाथ मिलाना जरुरी क्यों है, पुष्प भंवर सिंह को सॉरी क्यों कहता है, समझ नहीं आता है।

फिल्म का पहला घंटा पुष्पा के स्वैग और अकड़ पर खर्च किया गया है जो की पहले पार्ट में भी हम देख चुके है। फिल्म का स्केल बहुत बढा है, लेकिन मनोरंजन पहले पार्ट की तरह नहीं बढ़ा।

पुष्पा के किरदार पर ज्यादा फोकस किया गया है जिससे इसका असर कहानी और इसके दूसरे किरदारो पर पड़ता है। जिससे दूसरे किरदार उभर नहीं पाते, सुकुमार ने पुष्पा के स्वैग को दिखने में कहानी से समझौता किया है। जिससे दर्शकों को उतना मजा नहीं आता, अल्लू अर्जुन के फैंस इन कमियों को एडजस्ट कर लेंगे लेकिन नए दर्शक शायद नहि कर पाए।

कुछ दृश्य बहुत ही उम्दा बन पड़े है , जैसे जापान में फाइटिंग करते हुवे नज़र आना , पार्टी में हंगामा करना , माँ काली के रूप में डांस करना , क्लाइमेक्स में पुष्पा का मुँह से लड़ना।

कहानी में रश्मिका मंदना के लिए कुछ खास नहीं है करने को, एक दो सिन में वह अपनी चाप छोड़ती है।

स्क्रिप्ट की कमियों को सुकुमार ने अपने उम्दा निर्देशन के जरिये छुपाने की कोसिस की है। उनका निर्देशन बहुत अच्छा है। पुष्पा के स्वैग के जरिये उन्होंने फिल्म को उभारा है , पुष्पा फिल्म की USP है, जिसको निर्देशक ने उभरा है।

एक स्टार का स्टारडम फिल्म पर किस तरह भरी पड़ता है , उसका अल्लू अर्जुन उदाहरण है। उन्होंने पुष्प के किरदार को ऐसे जिया है की फिल्म की बाकि कमियों को भूल कर पुष्पा के प्रति दीवाने हो जाते है। आलू अर्जुन ने अपने अभिनय से पुष्पा के किरादर को दर्शको के मन में ऐसा बिठा दिया है की उन्हें पुष्पा के अलावा कुछ नज़र नहीं आता।

मिरोस्लावा कुबा ब्रोज़ेक की सिनेफोग्रॉफी शानदार है , उन्होंने अपना काम बहुत अच्छा किया है।

फवाद फासिल को पहले पार्ट की तुलना में समय ज्यादा मिला पर पहले पार्ट जैसी छाप नहीं छोड पाए।

पुष्पा 2 द रूल, पुष्पा द राइज को पीछे नहीं छोड़ पाती है।

कुल मिला कर पुष्पा 2 द रूल एक बार तो देखि जा सकती है।

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